
(संजीव ठाकुर) रिश्वत की अगर बात करें तो इसके जाल में सिर्फ पुलिस ही नहीं हर सरकारी से लेकर प्राइवेट डिपार्टमेंट के अधिकारी शामिल होते हैं ऐसा अगर मैं लिखूं तो यह शायद गलत नहीं होगा, हाल की ही मैं बात करूं तो दिल्ली पुलिस की विजिलेंस यूनिट ने दिल्ली पुलिस के कृष्णा नगर थाने के एक एएसआई प्रमोद को रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया, विजिलेंस यूनिट की जो प्रेस रिलीज जारी की गई उसमें लिखा गयाशिकायतकर्ता, बाराखंभा रोड, नई दिल्ली स्थित सतर्कता इकाई, दिल्ली पुलिस में आया और शिकायत दर्ज कराई जिसमें उसने बताया कि उसे वित्तीय विवाद के एक मामले में पीएस कृष्णा नगर के एएसआई प्रमोद ने बुलाया है और उस पर मामला निपटाने का दबाव बनाया जा रहा है। उसने आरोप लगाया कि उसे धमकी दी जा रही है कि अगर उसने मामले को दूसरे पक्ष के पक्ष में नहीं निपटाया तो आपराधिक मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसके अलावा, आरोप लगाया गया कि एएसआई प्रमोद मामले को बंद करने के लिए 2 लाख रुपये की रिश्वत मांग रहा था। शिकायतकर्ता ने बताया कि उसके विनती करने पर रिश्वत की राशि घटाकर 50,000 रुपये कर दी गई है, तो क्या ऐसे में इसे पूरी साजिश कहीं या पहले साजिश करता की भी रिश्वत देने में रजामंदी समझे तो क्या शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए क्या रिश्वत लेने वाले और देने वाले को एक ही श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए ताकि यह डर दोनों के मन में रहे यह बड़ा सवाल है, क्या कोई नया मामला हमें ऐसा देखने में मिल सकता है जिसमें दोनों के साथ ऐसा ही किया जाए।